शून्य और एक

सभी को सप्रेम प्रणाम और आशा करते है कि आप स्वयं की यात्रा पर बड़ी सजगता से बढ़ रहे होंगे, एवं अपने होने का असीम आनन्द पा रहे होंगे!

आज हम आपको कुछ संख्याओं के बारे में बताते है जोकि ‘शून्य’ और ‘एक’ है, दोनों ही संख्याओं का आध्यात्मिक और सांसारिक रूप से विशेष महत्व है! पहले सांसारिक रूप की बात करे तो जब तक शून्य का ज्ञान नहीं हुआ था, तब तक कोई भी गणना आगे नहीं बढ़ पायी थी! आज वर्तमान में संसार का दिमाग कहे जाने वाले कम्प्यूटर और इससे जुडी अन्य चीजों या इसके समान जैसे मोबाइल फ़ोन आदि इन सबका आधार शून्य और एक है, क्योकि इन सबका कृत्रिम दिमाग सारी गणनाएं, संकलन, विस्तारण तथा अन्य कार्य शून्य और एक में ही पूर्ण करता है! इसके आगे और भी बहुत कुछ है परन्तु हमारा मुख्य ध्येय सांसारिक नहीं आध्यात्मिक है, इसलिए हम अपने अध्यात्म के हिसाब से सोचते है!

यहाँ पर आप ‘शून्य’ को परमात्मा और ‘एक’ को आत्मा जान ले! एक को आप अद्वितीय भी जान सकते है! अब हम बात करते है तीन रूपों की जो ‘शून्य’ और ‘एक’ के सम्बन्ध में है! जैसे कि

0/1, 1/0, 0/0

  1. 0/1=0
    अगर आप परमात्मा पर सब कुछ छोड़ देते है तो वह अपने आप में आपको भी समाहित कर लेता है! अर्थात आप ‘परम’ में स्थापित हो गए है!
  2. 1/0=∞ परिभाषित नहीं है
    इस सम्बन्ध के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता क्योकि यहाँ आत्मा अपने आपको परमात्मा से ऊपर दर्शाता है यानि कि यहाँ मानव की अहंकार वाली स्थिति है, इस स्थिति में आत्मा ना स्वयं को जानती है न परम को मानती है, इसलिए यह परिभाषित नहीं है!
  3. 0/0=∞ परिभाषित नहीं है
    इस सम्बन्ध में बूँद अपने अन्दर समुन्दर समाहित का मान कर लेती है, अर्थात एक-शून्य में पूर्णतया रूपांतरण हो जाता है और स्वयं में ‘परम’ का दर्शन पा लेता है, इस सम्बन्ध को दूसरे रूप में कह सकते है ज्योति-ज्योति में समाहित कर गई है, और इस सम्बन्ध को भी कोई परिभाषा नहीं दी जा सकती है!

उपरोक्त तीनो सम्बन्ध आपको संक्षेप में बताए गए है विस्तार आप स्वयं ढूँढने का प्रयास करे और जो सम्बन्ध आप पाना चाहते है उसी के अनुरूप स्वयं को ढालने का प्रयास करे! हाँ यदि कुछ पाना है तो कोशिश करे अन्यथा सब छोड़ अपनी मस्ती में मस्त रहे!

सधन्यवाद!!!

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