मैं और मै में अन्तर

सभी साधको को सप्रेम प्रणाम, आशा करते है कि आप यात्रा पर सुचारु रूप से आगे बढ़ रहे है और समय-समय पर प्रश्न आते रहते होंगे आपके मन में, इसी तरह एक साधक ने सवाल उठाया कि जब मै ही सब कुछ जानने वाला हूँ तो फिर suchness के मुख्य पृष्ठ पर ऐसा क्यों लिखा है कि मेरी यात्रा मुझ तक कैसे है!

देखिये हम आपको थोड़ा विस्तार से समझते है कि कैसे सांसारिक मैं और आध्यात्मिक मै में अन्तर रहता है! दोनों मैं में शरीर एक ही है परन्तु सोचने-विचारने पर पता लगता है कि कौन-सा मैं क्या है!

क्रम स॰ मैं सांसारिक मै आध्यात्मिक
1. यह संसार की यात्रा करवाता है! यह मन की यात्रा करवाता है!
2. यह भौतिक वस्तुए के कारण पैदा होता है जैसे धन, मान, यश इत्यादि! यह मानसिक क्रिया कलापो से उत्पन्न होता है जैसे आनन्द, परमानन्द इत्यादि!
3. यह अहंकार को उत्पन्न करता है! यह भक्ति को उत्पन्न करता है!
4. इसके लिए सदैव दूसरो की आवश्यकता रहती है, दिखाने के लिए! इसमें स्वयं ही दृष्टा बना रहना होता है!
5. यह आपको विनाश और पतन की ओर ले जाता है! यह आपको विकास और उत्थान की ओर ले जाता है!
6. इस मैं के कारण आपको संसार में आपके मित्र बहुत ज्यादा मिल जाते है! इस मै में आप केवल अकेले और एकान्तवासी हो जाते है!
7. इस मैं में आपके पास दिखाने के लिए प्रमाण है जैसे पैसा, कपडा, गाडी, घर आदि! इस मै में आप कुछ नहीं दिखावा कर सकते है जैसे ध्यान, अनुभव आदि!
8. इस मैं में सभी सांसारिक रिश्ते आपके साथ है जैसे पत्नी/पति, भाई-बहन इत्यादि! इस मै में आपके साथ ज्ञान, भक्ति और ध्यान रहते है!
9. यह अंतिम समय में अकेलापन महसूस करवाता है! यह अंतिम समय में सभी का साथ प्रदान करता है!
10. यह अंतिम समय में परलोक की चिंता करता है और उसी में मर जाता है! यह चिन्तामुक्त होकर मुक्त हो जाता है!

सधन्यवाद!!!

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