शून्य और एक

सभी को सप्रेम प्रणाम और आशा करते है कि आप स्वयं की यात्रा पर बड़ी सजगता से बढ़ रहे होंगे, एवं अपने होने का असीम आनन्द पा रहे होंगे!

आज हम आपको कुछ संख्याओं के बारे में बताते है जोकि ‘शून्य’ और ‘एक’ है, दोनों ही संख्याओं का आध्यात्मिक और सांसारिक रूप से विशेष महत्व है! पहले सांसारिक रूप की बात करे तो जब तक शून्य का ज्ञान नहीं हुआ था, तब तक कोई भी गणना आगे नहीं बढ़ पायी थी! आज वर्तमान में संसार का दिमाग कहे जाने वाले कम्प्यूटर और इससे जुडी अन्य चीजों या इसके समान जैसे मोबाइल फ़ोन आदि इन सबका आधार शून्य और एक है, क्योकि इन सबका कृत्रिम दिमाग सारी गणनाएं, संकलन, विस्तारण तथा अन्य कार्य शून्य और एक में ही पूर्ण करता है! इसके आगे और भी बहुत कुछ है परन्तु हमारा मुख्य ध्येय सांसारिक नहीं आध्यात्मिक है, इसलिए हम अपने अध्यात्म के हिसाब से सोचते है!

यहाँ पर आप ‘शून्य’ को परमात्मा और ‘एक’ को आत्मा जान ले! एक को आप अद्वितीय भी जान सकते है! अब हम बात करते है तीन रूपों की जो ‘शून्य’ और ‘एक’ के सम्बन्ध में है! जैसे कि

0/1, 1/0, 0/0

  1. 0/1=0
    अगर आप परमात्मा पर सब कुछ छोड़ देते है तो वह अपने आप में आपको भी समाहित कर लेता है! अर्थात आप ‘परम’ में स्थापित हो गए है!
  2. 1/0=∞ परिभाषित नहीं है
    इस सम्बन्ध के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता क्योकि यहाँ आत्मा अपने आपको परमात्मा से ऊपर दर्शाता है यानि कि यहाँ मानव की अहंकार वाली स्थिति है, इस स्थिति में आत्मा ना स्वयं को जानती है न परम को मानती है, इसलिए यह परिभाषित नहीं है!
  3. 0/0=∞ परिभाषित नहीं है
    इस सम्बन्ध में बूँद अपने अन्दर समुन्दर समाहित का मान कर लेती है, अर्थात एक-शून्य में पूर्णतया रूपांतरण हो जाता है और स्वयं में ‘परम’ का दर्शन पा लेता है, इस सम्बन्ध को दूसरे रूप में कह सकते है ज्योति-ज्योति में समाहित कर गई है, और इस सम्बन्ध को भी कोई परिभाषा नहीं दी जा सकती है!

उपरोक्त तीनो सम्बन्ध आपको संक्षेप में बताए गए है विस्तार आप स्वयं ढूँढने का प्रयास करे और जो सम्बन्ध आप पाना चाहते है उसी के अनुरूप स्वयं को ढालने का प्रयास करे! हाँ यदि कुछ पाना है तो कोशिश करे अन्यथा सब छोड़ अपनी मस्ती में मस्त रहे!

सधन्यवाद!!!

मैं और मै में अन्तर

सभी साधको को सप्रेम प्रणाम, आशा करते है कि आप यात्रा पर सुचारु रूप से आगे बढ़ रहे है और समय-समय पर प्रश्न आते रहते होंगे आपके मन में, इसी तरह एक साधक ने सवाल उठाया कि जब मै ही सब कुछ जानने वाला हूँ तो फिर suchness के मुख्य पृष्ठ पर ऐसा क्यों लिखा है कि मेरी यात्रा मुझ तक कैसे है!

देखिये हम आपको थोड़ा विस्तार से समझते है कि कैसे सांसारिक मैं और आध्यात्मिक मै में अन्तर रहता है! दोनों मैं में शरीर एक ही है परन्तु सोचने-विचारने पर पता लगता है कि कौन-सा मैं क्या है!

क्रम स॰ मैं सांसारिक मै आध्यात्मिक
1. यह संसार की यात्रा करवाता है! यह मन की यात्रा करवाता है!
2. यह भौतिक वस्तुए के कारण पैदा होता है जैसे धन, मान, यश इत्यादि! यह मानसिक क्रिया कलापो से उत्पन्न होता है जैसे आनन्द, परमानन्द इत्यादि!
3. यह अहंकार को उत्पन्न करता है! यह भक्ति को उत्पन्न करता है!
4. इसके लिए सदैव दूसरो की आवश्यकता रहती है, दिखाने के लिए! इसमें स्वयं ही दृष्टा बना रहना होता है!
5. यह आपको विनाश और पतन की ओर ले जाता है! यह आपको विकास और उत्थान की ओर ले जाता है!
6. इस मैं के कारण आपको संसार में आपके मित्र बहुत ज्यादा मिल जाते है! इस मै में आप केवल अकेले और एकान्तवासी हो जाते है!
7. इस मैं में आपके पास दिखाने के लिए प्रमाण है जैसे पैसा, कपडा, गाडी, घर आदि! इस मै में आप कुछ नहीं दिखावा कर सकते है जैसे ध्यान, अनुभव आदि!
8. इस मैं में सभी सांसारिक रिश्ते आपके साथ है जैसे पत्नी/पति, भाई-बहन इत्यादि! इस मै में आपके साथ ज्ञान, भक्ति और ध्यान रहते है!
9. यह अंतिम समय में अकेलापन महसूस करवाता है! यह अंतिम समय में सभी का साथ प्रदान करता है!
10. यह अंतिम समय में परलोक की चिंता करता है और उसी में मर जाता है! यह चिन्तामुक्त होकर मुक्त हो जाता है!

सधन्यवाद!!!

घास और पत्थर

एक साधक नदी के किनारे -किनारे चल रहा था अपनी मस्ती में मस्त तभी अचानक उसकी नजर नदी के बीचो-बीच पड़े पत्थर और नदी के किनारे खड़े घास पर गयी! यही सब साथ में खड़ा एक पेड़ भी देख रहा था! तभी अचानक जो साधक था वह सोचने लगा कि नदी अपनी मस्ती में मस्त बह रही है, इसे अपने प्रियतम से मिलने की तलब है और जो भी रास्ते में आ रहा है उससे पास होकर गुजर रही है! तभी उसके व्यवस्थित मन में प्रश्न कौंधा कि अगर मानव घास के तिनके के समान रहे तो वह नदी के बहाव के साथ तथा विपरीत रहकर भी अपना अस्तित्व बनाये रख सकता है, क्योकि घास नदी के साथ तालमेल बनाकर रखता है और अपनी जड़ जमाए रहता है, परन्तु यदा-कदा नए-नए तर्ण फूटते रहते है पानी मिलता रहता है, तथा घास का विकास होता रहता है! फिर भी घास-घास ही रहती है! यदा-कदा कभी-कभार किसी पूजा मण्डप में थोड़ा प्रयोग आती है नहीं तो घास ही बनी रहती है! अर्थात यदि पूजा पाठ न हो तो उसका कोई अस्तित्व नहीं है!

अब स्वामी जी ने पास खड़े पेड़ के बारे में सोचना शुरू किया कि पेड़ ने पता नहीं कितने बसन्त देखे है और विभिन परिस्थितियो का सामना भी किया होगा, कभी पक्षी इसकी डालो पर बैठे होंगे, कभी पशुओ और यात्रियों ने इसकी छाया का आश्रय पाया होगा, साथ ही साथ नदी के कल-कल भरी ध्वनियो से गदगद रहा होगा, कभी पक्षियों का कलरव, कभी नदी किनारे मेंढको की टर-टराहट का पूरा मजा लिया होगा, सब कुछ सामान्य तथा दुरुस्त रहा होगा तभी तो इतना बड़ा हो पाया और आज भी अपने अस्तित्व पर कायम है!

तभी अचानक स्वामी जी को नदी के तलहटी में बड़े पत्थर का ध्यान आया तथा घास एवं पेड़ से तुलना करी तो पाया पत्थर तो पत्थर है इसमें न कुछ पैदा होता है ना यह किसी को कुछ देता है इसलिए इसका जीवन व्यर्थ है, नदी के रस्ते में भी अड़ा खड़ा है नदी भी इससे खरी-खोटी सुना रही होगी! परन्तु अब स्वामी जी रास्ते चलते रहे और अन्त में यह कहकर सब कुछ छोड़ दिया कि सब भगवान की मर्जी है! अब आप साधक की जगह खड़े होकर तीनों पर विचार कर सकते है कि कौन सही है!

कहानी में चार मुख्य पात्र है एक स्वामी या साधक, दूसरा घास, तीसरा पेड़ और चौथा पत्थर, सब अपनी-अपनी तरह से अपनी-अपनी परिस्थिति से मस्त है! हम अब विस्तार से चर्चा करेंगे!

  1. स्वामी जोकि आधुनिक साधक है जिसका मतलब है इधर-उधर से ज्ञान की बातें इक्कठी करना तथा उन्हें दुसरो से जोड़ना! परन्तु यह ताउम्र ज्ञान को ढोता रहता है ना तो इसका अपना स्वभाव ज्ञान और ध्यान को प्राप्त करना है और ना ही अनुभवशील बनना है, केवल कोरी निराधार बातें क्योकि इसको तीनों के बारे में सोचने का समय है परन्तु अपने बारे में नहीं सोच पाता है, इसलिए उम्रभर इधर-उधर ज्ञान बाटता फिरता है और परिणाम कुछ नहीं निकलता है!
  2. घास की तुलना अगर हम सामान्य जन से करे तो कोई बुराई नहीं है, यह अपनी मस्ती में मस्त रहता है, कभी-कभार अगल-बगल में हो रहे भजन कीर्तन का आनन्द उठता है और बस खुश रहता है कि उस से बड़ा धार्मिक तो कोई हो ही नहीं सकता है! एक दो दिन कुछ याद रहता है फिर अपने निर्वाह में मस्त है और सोचता है कि उसे तो सर्वोच्च शिखर प्राप्त हो गया है, क्योकि भजन-कीर्तन में बताया जाता है ‘सत्संग की आधी घडी तप के वर्ष हजार’ के बराबर है, वह इसी से बौराया रहता है कि सत्संग में गया था और ये जो लोग खामोखाह जप, तप, व्रत कर रहे है इनसे तो ऊपर ही हूँ!
  3. पेड़ की तुलना हम आधुनिक नामधारी समाज से करते है जोकि सोचता है कि एक या दो शब्द को बार-बार रटने से उसे परम की प्राप्ति हो जाएगी तथा अपने भरम को पोषित करता है, यह लोगो के, समाज के सभी रंगो में ढलता है, चलता है करता कुछ नहीं केवल रटा लगाता है और सोचता है उसने सारी कायनात को मुटठी में कर लिया है यहाँ तक कि मृत्यु भी इनके कहे अनुसार आ पायेगी! ऐसे बहुत से खोखले दावे प्रस्तुत किये जाते है!
  4. पत्थर की तुलना हम उस महान साधक से करते है जो अपने निजत्व और अस्तित्व करे, अपने स्वभाव को जानता है और उस पर अडिग रहता है तथा सब कुछ समर्पित कर देता है अपने परम की प्राप्ति को, ना किसी की आलोचना ना किसी का भय, बस धीरे-धीरे अपने आप को नदी की विरल धारा में घोलता रहता है और अपने को न्योछावर कर देता है, यह ना यह सोचता है कि क्या होगा, कैसे होगा, कब होगा बस लगा रहता है, धीरे-धीरे अपने आपको परम में विरक्त कर देता है और अपने परम को प्राप्त कर जाता है! अतः जो साधक निस्वार्थ अपने ध्यान में लगा रहता है किसी अन्य से तुलना नहीं करता है, दिखने में तो वह पत्थर दिखता है परन्तु असीम की प्राप्ति भी उसे ही होती है! इस कारण उसकी नियमितता है, यह कभी परिणाम की सोचता नहीं बस गति करता रहता है! थोड़ा-सा सहारा लेता है नदी से और अपने आपको सम्पूर्ण समाहित कर देता है या बलिदान कर देता है!

नदी:- नदी आप ध्यान को समझ सकते है जोकि चारो को बराबर अवसर दे रही है परन्तु समर्पित एक ही हो पाया है और नदी ने उसे ही पार पहुँचा दिया! आप सभी suchness के साधको से प्रेमपूर्ण अनुरोध है आप अपनी सजगता पर पत्थर की भांति अड़े रहे ताकि आप भी परम को प्राप्त कर सके! हम आपके आभारी रहेंगे क्योकि दीपक से दीपक जलता है, अगर एक दीपक भी जल जायेगा तो बाकियों को भी सहारा मिल जायेगा जलने में, फिर बस आनन्द ही आनन्द सर्वोच्च शिखर आपके लिए है!

सधन्यवाद!!!

हमारी सांझी मूर्खता

जैसा कि आज हम सब आधुनिकता की रट लगाए रहते है और अपने आप को ज्यादा समझदार मानते है यह किसी से छिपा नहीं है, यहाँ हर कोई एक-दूसरे से बढ़कर है सिर्फ बातें बनाने में केवल कोरी अनुभविहीन बातें, कई बार हम सब कुछ न कुछ अनजाने में या परम्परागत तरीके से करते रहते है जो कि कोई मान्यता या चमत्कार नहीं है, उसके पीछे कुछ लोगों का निजी स्वार्थ काम करता रहता है! एक तरफ हम विज्ञान के जानकार बन जाते है तथा दूसरी तरफ हम मूर्ख भी बनते रहते है जिसके कईयों उदहारण आप हर रोज आस-पास देख सकते है! जैसे कि यदि आप के घर में कलह, लड़ाई झगडे रहते है तो आप किसी वास्तुशास्त्री के पास जाते है तो वह आपको दिशा देखकर आपके घर के बारे में बता देता है कि इस कोने में यह रखो, उस में यह रखो आदि-आदि!

परन्तु यही बात अगर वैज्ञानिक तरीके से सोची जाये जो कि सिद्ध किया जा चूका है कि धरती घूम रही है तो क्या कोई भी दिशा कभी भी पूर्व- पश्चिम या फिर उत्तर-दक्षिण रह पायेगी? नहीं! फिर भी हम इतने समझदार होकर सभी कार्य करते है और देखते ही देखते आपको कुछ समय शान्ति प्राप्त हो जाती है परन्तु कुछ समय बाद फिर वही कलह होनी शुरू हो जाती है तो आपका उपाय तो असफल हो गया, फिर आप किसी दूसरे वास्तुशास्त्री से मिलेंगे वह भी आपको कुछ अलग चीज घर में रखने कि सलाह देगा! ये तो आधुनिक डॉक्टर की तरह है कि यह-यह दवाई ले लेना दवाई की दूकान से तथा दूकान का नाम भी बतायेगा, जिससे उसको उसका ऊपरी हिस्सा प्राप्त होता रहता है, इसी तरह वास्तुशास्त्री भी अपना हिस्सा लेते है और अपनी धंधा बढ़ाते जाते है! अब आप समझ जाये कि आप सही है या विज्ञान सही है!

दूसरा आप किसी कुण्डली विशेषज्ञ से कुण्डली दिखाने जाते है थोड़ा उस पर भी विचार करते है वह आपकी कुण्डली के सारे गृह नक्षत्र जांच करके बता देते है यह-यह दोष है ये-ये चीज चढ़ानी पड़ेगी और ये-ये यज्ञ होंगे अगर करवाने है तो सही नहीं तो बड़ी विपति सामने खड़ी है अब आप डर के कारण सब कुछ बताये अनुसार करेंगे तथा फिर भी घटनाक्रम तो चलता रहेगा!

परन्तु क्या कभी आपने सोचा भी है वह कुण्डली विशेषज्ञ आपके जनम दिवस से सारी गणनाएं करके बताता है वह समय थोड़ा ऊपर नीचे बता दे तो सारा हिसाब-किताब बदल जाते है! अब थोड़ा-सा विचार सभी धर्मो की मुख्य धार्मिक किताबो से लेते है जो कि मुख्यतः सारांश में यह बतलाती है कि आत्मा/जीव अजर अमर है! जब आत्मा ना मरती है ना जन्म लेती है तो फिर जन्म दिवस का आप कैसे पता लगा सकते है यह तो सरासर झूठ हो गया! चलो फिर से सोचते है जन्म दिवस आप किसे मानते है एक बच्चा माँ के गर्भ में पहले दिन से आया वो या गर्भ से बाहर आया वो दोनों ही बच्चे के लिए अलग-अलग है, अब आपका विशेषज्ञ बता पायेगा कि बच्चा कब गर्भ में आया या आप बता पायेंगे? नहीं! तो फिर यह भी एक विशेषज्ञ वाली मूर्खता सिद्ध हुई!

तीसरा हम लेते है आधुनिक डर जो सब से ज्यादा फैलाया जा रहा है, वह है शनिदेव का डर जिसके कोप से देवता तक नहीं बच पाते, उत्तम किस्म का डर है! अब इस पर थोड़ा विचार करते है वह यह है कि एक आदमी सारा दिन शनिवार के दिन सरसो का तेल मांगकर इक्कठा करता है तथा साथ में कुछ पैसा भी लेता है शनिदेव के नाम पर, तथा घर जाकर उस पैसे को निजी काम में खर्च करता है तथा तेल को घर पर प्रयोग करता है या बाजार में बेंच देता है! जब इस आदमी का शनिदेव जोकि उसके नाम को खराब कर रहा है कुछ नहीं बिगाड़ पाता है तो आप तो वैसे ही उससे डरते है, डर के कारण आप तो वैसे भी भला-बुरा नहीं कह पाते! अब आप खुद सोच रहे होंगे कि यह तो विरोधाभास है! नहीं! यह केवल जागरूकता है अगर कोई समझ जाये तो सही न समझे तो सही! अब आपके मन में यह विचार आ रहा होगा, फिर हम ठीक कैसे हो जाते है! जैसे घर में कलह कम हो जाती है या आपका काम बनने लगता है, या आपके सम्बन्धो में मधुरता आ जाती है आदि आदि!

इन सबके पीछे कारण है आपके द्वारा ग्रहण किये गए संस्कार जो कि आपको पाता नहीं होता कब ग्रहण हो गए! यदि आप कण-कण में प्राण/परमात्मा का वास मानते है तो आपको यह भी पता है छोटे से छोटा कण भी अपनी स्मृति लेकर चलता है, जिसको हम कोशिका कहते है!

यह कोशिका अलग-अलग शरीरों के हिसाब से ढलती रहती है यानि कि हमारा शरीर बहुत सारी कोशिकाओ का जोड़ है! अब हम जो कुछ भी खा रहे है, पी रहे है, श्वास ले रहे है उसमे कोशिकाओं का घटना-बढ़ना चलता रहता है! इसी तरीके से जिस प्रकार का पदार्थ हम ग्रहण करते है या शरीर में भेजते है उसी प्रकार के संस्कार अंदर उत्पन्न हो जाते है! यदि हम यह मानकर चले कि एक गेहूँ/चावल का दाना क्या संस्कार उत्पन्न करेगा तो वह दाना किन-किन अच्छी-बुरी उसे अनुरूप या विषय परिस्थितियो से होकर गुजरा है! वह उसका अनुभव साथ लेकर चलता है तथा जब शरीर में पहुँचता है तो अपने अनुभव साथ लेकर चलता है तथा शरीर में पहुँचता है तो अपने अनुभव के आधार पर संस्कार उत्पन्न करता है! यह बहुत बारीक कमियाँ है थोड़ा सोचने पर ही समझ आ पायेगा! परन्तु आपको तो जानना है कि फिर उपरोक्त मुर्खताओ के करने के बाद भी फायदा तो मिला है! इस सबका कारण आपके द्वारा किया गया प्रयोजन नहीं परन्तु आपके द्वारा यह महसूस करना है कि अब सब अच्छा होगा! यदि मानव मष्तिस्क की बात करे तो इसमें बहुत से छोटे-छोटे तंतु है जो कि विभिन प्रकार ले शारीरिक संदेशो को शरीर में इधर-उधर करते है! जैसा कि आपने देखा होगा टेलीफोन एक्सचेंज में बहुत बारीक-बारीक तार होते है तथा संचालक जब इन पर काम करता है तो एक तार को किसी दूसरे के कनेक्शन (जुड़ाव) से जोड़ता है और उसका फ़ोन न. बदल जाता है! उसी प्रकार आपके मस्तिष्क के तंतु जब आप उपरोक्त गलतिया या मूर्खता करते है तो वह अपना स्थान बदल लेता है यह आपकी इच्छा शक्ति से हुआ है न कि उपरोक्त दान-दक्षिणा से! अतः आप समझ तो गए होंगे कि एक आदमी जैसे सोचता है वैसा बन जाता है!

अब हम आपको इसके लिए एक छोटा सा ध्यान बताते है, जब कभी आपको लगे की आपके साथ कुछ बुरा चल रहा है या हो रहा है तो खुले आसमान के नीचे खड़े होकर दोनों हाथों को फैलाकर आसमान को देखते हुए यह बोले All is Well आपके सरे बुरे विचार, बुरे दिन एक सप्ताह यदि आप लगातार करते है तो अच्छे में बदल जायेंगे और आपके अंदर जोश भर जायेगा, जिससे इच्छा शक्ति बढ़ती जाएगी!

ऐसा है, तो क्या मानू मैं

शायद जहाँ तक आदमी को कुछ भी याद रहता है तो वह इतना ही जान पाता है कि उसका अपना कुछ भी नहीं है, वह भी शायद साधना पथ पर चलने वाला कोई विरला ही समझ सकता है! यदा-कदा कोई एकाएक इस मानव जाल से बाहर आ पाता है, तथा जो जान जाता है उसकी कोई क़दर नहीं कर पाता है, क्योंकि इस सोते हुए संसार के बीच में अकेला जागने वाला वही होता है!

जब-जब आप कुछ याद कर पाए तो आपको अपने बचपन की कुछ बातें याद आएंगी, क्योंकि जब तक कोई होश में रहता है, तब तक ही वह कुछ जान पाता है! अब हम बचपन से ही बात करना शुरू करते है, शायद यही सही रहेगा, देखिये जब आप बचपन में यानी 1 से 2 साल के हुए तभी आपका प्रशिक्षण शुरू हो जाता है, कोशिश तो प्रथम दिन से ही शुरू हो जाती है! आप आज के सन्दर्भ में अपना बचपन जानने की कोशिश करे जैसे आज माँ-बाप एवं पूरा परिवार बच्चे को सिखाता है वह क्या है, यह क्या है, माँ कौन है, पापा कहाँ है आदि-आदि! उसके बाद हर बात पर समझाना यह गलत है – वह गलत है और आप का बेवकूफ बनाना शुरू आपके स्कूल के शिक्षक कर देते है जहाँ प्रत्येक विषय में एक ही बात के कई-कई अर्थ समझाए जाते है यहाँ से आपका दिमाग पूर्ण भ्रष्ट होना शुरू करा दिया जाता है, उसके बाद आपको दूसरों से कैसे पेश आना है चाहे आपकी इच्छा हो या ना हो आपको हर समय एक नया तथा झूठा चेहरा इस्तेमाल करना सिखाया जाता है, और जब आप निपुण हो जाते है तो आपको पूरा का पूरा मन सड़ चुका होता है, कई बार तो आप आपको अपने होने की छोटी सी झलक मिलती है!

अब आप याद करे कि आप कितने चेहरे इस्तेमाल करते है जैसे घर का चेहरा, बाजार का, पार्टी का, अपने से बड़ों के सामने का, छोटों के सामने का, साथ वाले के सामने का, घर पर ही माँ-बाप, भाई-बहन, बेटा-बेटी तथा पत्नी/पति के आगे भी दुनिया भर के नकाब लेकर आप घूम रहे है और फिर भी यही मानते है कि आप है ये सब है, शायद यही है

अब इतने प्रशिक्षणों के बावजूद हम भी आपको एक नया प्रशिक्षण बताते है जोकि आपको इन चेहरों से निजात दिलवा सकता है अगर आप ईमानदारी से इसका प्रयोग करे तो!

  • सबसे पहले आप अपने आप को ढूढ़ने का प्रयास करे यानी अपना अवलोकन करे कि आप जिस भी किसी से मिलते है आप ही है या कोई ओर!
  • यदि आप किसी के बारे में बुरा सोचते है तो उसके सामने ही बता दे, कि आप उसके बारे में ऐसा-ऐसा सोचते है!
  • एक कॉपी में सब कुछ लिख ले कि जब-जब आपने सही होना सीखा तो क्या-क्या अड़चने आई तथा उन पर गौर से काम करे कि ये क्यों नहीं टूट पा रही है!
  • जब भी किसी से सामना हो या बात हो तो सामने वाले के नाक की नोक पर ध्यान दे आपको सामने वाले की वास्तविकता का आकलन होने लगेगा!
  • जब आप दूसरे को सच्चाई बताएंगे तो हो सकता है कि आपस में दरार आ जाये तो साथ ही साथ सामने वाले से माफ़ी भी मांग ले यह कहकर कि शायद आप गलत है, इससे आपको भी शुरू-शुरू में पीड़ा महसूस होगी!
  • सबको एक साथ न लेकर अलग-अलग दिन एक-एक पर प्रयोग करे ताकि आप ज्यादा अन्तर्द्वन्द में न फसे!

और हाँ जब आपको इन चेहरों से मुक्ति मिलनी शुरू हो जाये तो आप खुले आसमान के नीचे हाथों को फैलाकर आसमान को 2 या 3 मिनट निहारते रहे, आपको बहुत ही सकारात्मक ऊर्जा मिलेगी!

जब कभी आपके पास समय हो तो आप जमीन पर या चारपाई पर हाथों तथा पैरो को फैला के कमर के बल तथा ऐसी ही बाद में पेट के बल 2 या 3 मिनट तक अपने पूरे शरीर को ढीला छोड़ते चले ओर शरीर को महसूस करे तथा अपने अनुभव का मजा ले!

आदमी की सबसे बड़ी कमजोरी

हम आशा करते है कि आप को suchness से बहुत कुछ सीख लिया होगा! और आप साथ-साथ अपने खाने एवं पीने पर भी ध्यान दे रहे होंगे तथा साथ-साथ ध्यान की विधियां भी प्रयोग में ला रहे होंगे! आप इन्हे सुचारु रूप से चालू रखे और नियमित रूप से करते रहे तथा कोई भी परेशानी आए तो आप हमारे से संपर्क साधे ताकि हम आपकप उचित समाधान प्रदान कर सके!

मित्रो आपने हाथी तो सभी ने देखा होगा! हाँ तो यहाँ हाथी के विषय में हे कुछ जानकारिया दी जा रही है! हाथी एक विशालकाय जानवर है, इसी हाथी में बहुत ज्यादा ताकत भी होती है! पर किसी भी हाथी को अपनी ताकत का अन्दाजा नहीं होता है हरेक हाथी सामने वाले को बड़ा और अपने को छोटा देखता है तथा अपना शरीर नहीं देख पाता है! क्योकि उसके बड़े-बड़े कान उसके विशालकाय तथा ताकतवर शरीर का ज्ञान नहीं होने देते है!

इसी तरह मानव जीवन में भी मानव के पास असीमित शक्ति का भण्डार है और हाथी की तरह यह भी अपने को दुसरो से छोटा समझता है! इस मानव प्राणी को भी इसके कान इसकी ताकत का अन्दाजा नहीं होने देते है क्योकि आप और हम सभी किसी भी बात को सुनने से हे मान लेते है तथा यह भी नहीं जानना चाहते है कि यह सही भी है या नहीं! कई बार देखा है कि आपको कोई आपका सुभचिन्तक बताता है कि कोई आपके बारे में भला-बुरा कह रहा था और आप इसी बात पर विश्वाश करके सोचने पर मजबूर होते है कि उसने ऐसा क्यों कहा तथा आप अपनी बहुत सारी शक्ति ऐसी हे बाते सुनकर खराब करते रहते है, यदि आपको किसी बात पर संदेह हो तो आप सामने वाले से संपर्क साधे और अपने बीच के गीले-सिकवे दूर कर ले ताकि आपकी बेशकिमती शक्ति बच सके और आपके अंदरूनी निर्माण में सहायक हो सके!

वैसे भी मानव की बुद्धि तीन तरह की होती है:-

  • जड़ बुद्धि या पत्थर बुद्धि
  • जल बुद्धि
  • आकाशीय बुद्धि

दोस्तों तीनो बुद्धियों का निर्माण आप स्वयं करते है! जैसे की जड़बुद्धि या पत्थर बुद्धि इसमें यही हिसाब है जैसे आपने पत्थर पर कोई लकीर खींची तो वह बहुत गहरे तक होगी और सहज नहीं मिटेगी! इसी तरह आप भी कुछ बाते इतनी गहरी बना लेते है जो जिंदगी भर नहीं भूला पाते यानी इस लकीर को नहीं मिटा पाते है!

दूसरी जल बुद्धि जैसे आपने पानी पर लकीर खींची लकीर तो बन रही है परन्तु साथ ही साथ मिट भी रही है इसमें भी आपको कुछ महसूस होगा!

तीसरी आकाशीय बुद्धि इस में आप आकाश में यानी हवा में लकीर खींचे तो आपको पता चलेगा की कोई लकीर बनी ही नहीं!

इसी तरह आप भी अपनी बुद्धि का निर्माण करे तथा आकाशीय बुद्धि प्राप्त करने का प्रयास करे! तथापि यदि आप कुछ सही नहीं सुनते अपने बारे में या कोई गलत भी कहता है तो आप स्वयं पर विश्वास रखे और तीसरी बुद्धि की तरह लकीर बनने ही न दे! यह यात्रा धीरे-धीरे आपको चौथे शरीर की और ले जा रही है! अतः आप बहुत ही सजग रहे!

आखिर आप इतने थके हुए क्यों है?

आज की आधुनिकता की दौड़ में किसी के पास अपने लिए समय नहीं है बाकी सभी के लिए है आप यह जान ले आप है तो संसार है आप नहीं है तो संसार भी नहीं है! आज काम के बोझ से दिखावटीपन से तथा आराम खरीदने की होड़ में हमने अपने को दांव पर लगा दिया है! हर जगह माया ने अपना जाल बिछा रखा है और आप उलझते जा रहे है! आप स्वयं को थोड़ा आराम भी नहीं दे पा रहे है नाहि अच्छी नींद ले पा रहे है! इस सभी की कारण आप योगा, प्राणायाम, घूमना आदि भी नहीं कर पा रहे है परन्तु समय की अभाव के कारण हम आपसे दस मिनट चाहते है इससे ज्यादा समय हमे नहीं चाहिए! सबसे पहले आप अपने से कहिए मुझे दस मिनट में शक्ति प्राप्त करनी है और जो सारा दिन या रात में आपने शक्ति गवाई है वो आपको दस मिनट में मिल जाएगी!

आप दफ्तर में है तो कुर्सी पर घर पर है तो सोफे पर या चारपाई पर आराम से कमर टीका कर बैठ जाए या लेट जाए जैसी सुविधा मिले उसके अनुसार आप स्वयं देख ले! अब पूरे शरीर को ढीला छोड़ना शुरू कर दे धीरे-धीरे आप नींद के आगोश में जा रहे है जितना ढीला हो सके छोड़ते चले परन्तु आप पहले ही अपने को बोल देना की इतने बजे या इतनी मिनट बाद मुझे जागना है नहीं तो आप ज्यादा भी निन्द्रामग्न हो सकते है! यह प्रयास आप जब ज्यादा थके हो तब कही भी कर सकते है और आप नई स्फूर्ति प्राप्त कर सकते है! इतना करने के बाद अगले दस मिनट तक आप यह नहीं जान पाएंगे कि मुझे क्या करना है तो इस दौरान आप अपना मुँह ठण्डे पानी से धोइये और एक गिलास पानी घूंट-घूंट कर पिये तथा आप जाग्रत अवस्था में पहुंच चुके है अब अपने काम पर ध्यान दीजिए!

आइए चेहरे को सुन्दर बनाए

आपने अभी तक देखा है पढ़ा है और प्रयोग किया है कि सौन्दर्य वर्धक पदार्थ ही आपको सुन्दर बनाते है! परन्तु यह विधि आपके इन सबसे ज्यादा सुन्दर बनाती है आप प्रयोग करके देखे!

आप इतना कुछ जान गए हो तो अब थोड़े में ही समझ सकते है, इस विधि में भी आपको आवश्यकता से ज्यादा जो तनाव आप अपने चेहरे को दिखाने में लगाते है उसको कम करना है! आप सबसे पहले ठण्डे पानी में मुँह को धो ले! अब आप आराम से बैठ जाए! तथा धीरे-धीरे अधखुले होठो पर मंद-मंद मुस्कान लाइये, अब आप इस मुस्कान को बढ़ाते चले जाइए तथा इसके बाद होठों को बन्द करे मंद-मंद मुस्काए और पूरे चेहरे की मासपेशियों को ढीला कर दे आपको अपने अन्दर नई शक्ति एवं स्फूर्ति का विस्तार होता नजर आएगा और आप इसको सतत करते रहे तथा अपने को अन्दर-बाहर से सुन्दर बनाते रहे!

ये देखिए आप अपनी कितना मानते है

पिछले अध्यायो में हमने आपको मुक्के बनाने की तरकीब बताई थी! अतः हम यह मान कर चलते है यदा-कदा आप इनका प्रयोग भी कर रहे होगे! हम आशातीत है आप इसमें आनन्द लेने लग गए होगे और आपको कुछ तनाव कम करना भी आ गया होगा! अब हम इसी विधि को थोड़ा विस्तार देते है ताकि आप स्वयं पर काबू करना सीख जाए!

इस विधि के प्रयोग में आप ककड़ी, खीरा, मूली, गाजर, जो भी उपलब्ध हो उसी पर प्रयोग कर सकते है! आप एक चाकू लीजिए तथा उपरोक्त में से कोई भी सब्जी ले लीजिए तथा उसे चाकू से काटे तथा बारीक से बारीक काटे अब आपने इसको जल्दी-जल्दी में काट लिया है, परन्तु आपने कोई ध्यान नहीं दिया, यदि आपने थोड़ा-सा भी ध्यान दिया है तो सोचे कहीं ऐसा तो नहीं है कि जब आप सब्जी काट रहे थे तब हाथ और चाकू के काम में आपके दांत भी सहयोग कर रहे थे और आपके मस्तिष्क में खींचाव महसूस हो रहा था ऐसा ही होता है! परन्तु डरने की बात नहीं है आपने अभी तक ऐसा ही किया है अब आप इस विधि से सब्जी कांटे!

ध्यान रहे खीरा, ककड़ी, मूली, गाजर, लोकी कोई भी ले परन्तु उसके बाद वह खाने में प्रयोग हो जाए अर्थात जो भी आपको सलाद में पसंद है उसी पर अनुभव करे ताकि आपका ध्यान भी हो जाए और आपका खाना भी बन जाए! अब आप कोई एक सब्जी ले तथा धीरे-धीरे चाकू से काटना शुरू करे और यह ध्यान रखे जैसे मुक्के बनाने में सारे शरीर की ताकत प्रयोग करते थे वैसे ही यहाँ भी ध्यान रखना है कि यह काम हाथ का है दांत का नहीं, आप यह ध्यान रखे जब आप चाकू से सब्जी काट रहे है तो दांतो पर जोर नहीं आना चाहिए और आप देखे धीरे-धीरे आप बहुत हल्का महसूस कर रहे है और आपको अपने पर आश्चर्य भी हो रहा होगा, और हंसी भी आ रही होगी कि बिना काम कितनी ताकत ऐसे ही खराब चली जाती है, आप जितनी आंतरिक शक्ति बचाएंगे उतना ही आपकी यात्रा सुचारु चलती रहेगी!

खुद जानिए आप क्या कर सकते है!

Suchness के प्रेमियों अभी तक आपने हमें पढ़ा और कुछ समझा कुछ छोड़ दिया! परन्तु अब हम आपको खुद को समझने की कवायद में ले चलते है! यहाँ आपको छोटी-छोटी विधियां दी जा रही है जिनके कारण आपको स्वयं आभास होगा आप कितने आत्म संयमी है तथा जो भी आप करना चाहते है वह भली प्रकार से क्यों पूरा नहीं हो पाता है! आप स्वयं की कमजोरियां जाने और दूर करने का प्रयास करे!

अब आप दो गिलास तथा एक छोटी चम्मच लिजिए तथा इनमे से एक गिलास पानी से भर ले तथा दूसरा गिलास खाली रखे! अब आप छोटी चम्मच की सहायता से भरे हुए गिलास से खाली गिलास में एक-एक चम्मच पानी की भरकर सारा पानी खाली गिलास में डाले! यहाँ ध्यान देने की बात यह है कि आपका मन आपके इस छोटे से काम को करने से पहले समझाएगा कि ये भी कोई काम है! मैं इससे बड़े-बड़े काम कर सकता हूँ ये क्या काम है परन्तु आप इसे अभ्यास करेंगे तो आपको पता चलेगा कितना भारी काम है! बीच-बीच में मन ये भी कहेगा उठा के गिलास डाल दे दूसरे में परन्तु आपको पहले ही बताया जा चुका है एक-एक चम्मच भरकर ही डालें और हाँ यहाँ ध्यान रहे दोनों गिलासो के बीच में छ: से आठ इंच का फासला जरूर रहे! अब आपको थोड़ा और गहरे में जाना है! आपको यह भी ध्यान रखना है चम्मच का पानी गिलास में ही गिरे नीचे नहीं अर्थात गिलास का पूरा पानी गिलास में ही भरे न कि आजू-बाजू में बिखरा दे! यह प्रयास आप लगातार तीन दिन करें तथा फिर दो दिन छोड़कर देखे आप पहले तीन दिन का सारा अनुभव इन दो दिनों से तुलना कर सकते है! इस विधि से आप के आत्म संयमित होने की शक्ति बढ़ती है! तथा आप निरन्तर इसका प्रयोग कर सकते है परन्तु होश पूर्ण रहकर! अतः आप दो या तीन बार जरूर करें परन्तु एक दिन में एक बार ही करें!