चौथा शरीर/पूर्ण बोध शरीर

चेतन शरीर वह शरीर है जो मूल चेतना के विचार से जाग्रत होता है यह अपने आप में अदभुत शरीर है, जब आप इसके स्तर पर पहुँचते है तो आपको स्वयं कहाँ हो का ज्ञान होता है, तथा आपके सभी विचार शून्य होने लगते है! कभी-कभी लम्बे अंतराल तक कोई भी विचार आपके मष्तिस्क में नहीं आएगा और जैसे ही एकाएक विचार आएगा तो आपको तुरंत पता लग जायेगा! यह शरीर मुख्य रूप में सात चक्र है जो कि कुण्डलिनी की शक्ति धारण किये रहते है! इनमें चक्र निम्नलिखित है, यदि इन्हे शारीरिक क्रम अनुसार रखे तो ह्रदय चक्र मध्य में आता है, उसी प्रकार चौथा शरीर भी सातों शरीर के मध्य में आता है!

1. मूलाधार चक्र 1. स्थूल शरीर
2. स्वाधिष्ठान चक्र 2. सूक्ष्म शरीर
3. मणिपूरक चक्र 3. मानस शरीर
4. अनाहत चक्र 4. चेतन शरीर
5. विशुद्धि चक्र 5. सहज/ भक्ति शरीर
6. आज्ञा चक्र 6. ब्रहम शरीर
7. सहस्त्रार चक्र 7. निर्वाण शरीर

अगर हम उपरोक्त तालिका की बात करे तो ऊपर से निचे या निचे से ऊपर ह्रदय चक्र और चेतन शरीर मध्य में बने रहते है! यही अवस्था मध्यम मार्ग कहलाती है! अतः अब आप समझ गए होंगे कि आप कहाँ पर पहुंच चुके है! इस शरीर के जाग्रत होने पर आपके अंदर नयी ऊर्जा संचारित होगी जो कि नवनिर्माण में सहायक होगी यानि यह आपकी सर्जनशीलता को जाग्रत करती है और बढाती है! यहाँ पर स्वयं पर संयम रखना बहुत जरुरी है क्योकि इस रास्ते पर पीछे से सीधा चला मार्ग दो हिस्सों में बट जाता है जिसमे अच्छी या बुरी यानि सर्जन या विनाश दो मार्ग होते है अब यह साधक के ऊपर है वह किस पर जाना चाहता है उससे कुछ नया बनाना है या बने हुए को ख़त्म करना है यह साधक की अपनी मर्जी रहती है! इसलिए आपसे अनुरोध है कि इस शरीर को जाग्रत करने से पहले अपने ऊपर काबू रखे या संयम बनाये रखे! हाँ, यहाँ यह भी बता देना जरुरी है कि जब तक आप पहले तीन शरीरों पर काम नहीं करेंगे तो चौथा जाग्रत नहीं होगा! यदि आप यह सोचते है कि सीधा चौथा ही जाग्रत करते है तो यह आपकी हठ होगी, इससे जो शारीरिक और मानसिक कष्ट होगा उसके आप स्वयं उत्तरदायी है! हम आपसे पुनः अनुरोध करते है कि आप श्रृंखला में चलते रहे जिससे आपका विकास हो सके न कि आप पागल या विनाश को प्राप्त कर ले! हाँ, यहाँ यह भी ध्यान रखना है जैसे-जैसे आप चेतन होते जायेंगे आपको दूसरों के साथ घट रही घटनाओं का अंदाजा लगने लगेगा और यदि आप उनकी मदद करना चाहते है तो कर सकते है परन्तु वह कष्ट आपको झेलना पड़ेगा! अर्थात यदि आप किसी विचार को ठीक करना चाहते है तो आपको जितना ऊर्जा में वह ठीक होगा बदले में उतनी यात्रा का कष्ट सहन करना पड़ेगा! यह आपकी अपनी मर्जी है जो चाहे करें हमने आपको पहले ही अवगत करा दिया है! यहाँ पर आधुनिक भाषा में जिससे रेकी कहते है यह आपके अंदर अपने आप जाग्रत हो जाएगी! यानि आप अपना सन्देश मष्तिस्क से किसी दूसरे के मस्तिष्क तक पंहुचा सकते है, या अपनी ऊर्जा दूसरे को दे सकते है आदि-आदि!

अब इतनी बातें जान लेने के बाद आप यह सोच रहे होंगे कि हमने आपको यह तो बताया नहीं कि यह जाग्रत कैसे होगा इसके लिए हमें क्या करना होगा तो इसका सीधा जवाब है – ध्यान! चेतन शरीर का मुख्य भोजन ध्यान है! अब आप सोचते होंगे कौनसा ध्यान करें तो कोई चिंता का विषय नहीं है! हम आपको छोटी-सी विधि भी बता देते है! वैसे तो पीछे अध्यायों में जो भी विधियाँ है वो सभी इसी की तैयारी के लिए बताई है, परन्तु फिर भी आपको कुछ और करने के लिए बता देते है! इस शरीर के ध्यान के लिए आपको शवास के ध्यान कि जरुरत है जो कि निम्नलिखित चरणों में पूरा करना होगा! यदि आप की दिली इच्छा है इससे करने की तो करे अन्यथा छोड़ दे!

चरण 1: आपको प्रारंभिक दस दिनों तक श्वास को पेट तक पहुंचना है यानि जब भी आपको दिन में, रात में याद आये तो साँस लेते वक़्त पेट फूलना चाहिए! ये जरुरी नहीं है आप सुबह जल्दी उठकर करें! जब दिल करें या याद आए शुरू कर दे कहीं भी कभी भी!

चरण 2: अब इस चरण में आपको जितना हो सके श्वास को बहार फेकना है, अर्थात जब आप साँस छोड़ रहे है तो आपका पेट पूरा पिचक जाना चाहिए, इससे शुरू-शुरू में थोड़ा श्वास लेने में कठिनाई आएगी एकाध बार फिर सही हो जायेगा! यह आपको अगले दस दिन तक करना होगा! इसके लिए भी जब चाहे शुरू हो सकते है समय की कोई पाबन्दी नहीं है!

चरण 3: यह ध्यान आप सोते वक़्त करे जिससे दोनों स्वांस लेने और छोड़ना साथ-साथ अगले दस दिन तक करे और दस मिनट तक करे कोई घडी या अलार्म की जरुरत नहीं है! अंदाजे से कर लीजिये पांच मिनट हो सके, सात मिनट हो सके, या दस मिनट हो सके! जहाँ तक आप कर पाए और शरीर को ढीला छोड़कर सो जाये!

जैसे ही आप क महीना पूरा कर लेंगे तो आप स्वयं के अंदर कितना बदलाव आया है वह महसूस करने लगेंगे, अगर आप ज्यादा एकाग्र होकर करेंगे तो आपको दो या तीन दिन में अंतर समझ आ जायेगा!

कुछ आवश्यक बाते जो आपको ध्यान रखनी है:

  1. जब भी आप पेट फूलने वाले चरण को करे तो आपकी कमर में कुछ भी सख्त बंधा न हो चाहे वह बेल्ट हो या कोई दूसरी रस्सी, इसको थोड़ा ढीला कर ले नहीं तो पेट दर्द करना शुरू कर देगा, होगा तो कुछ नहीं फिर भी पीड़ा तो मिलेगी!
  2. कोशिश ये करे कि जब आप श्वास लेने-छोड़ने की प्रक्रिया करे तो ज्यादा प्रदूषित जगह न हो!
  3. जब तक आप खुद प्रयास न करे तब तक दुसरो के सलाहकार न बने यह आपसे सप्रेम अनुरोध है!

यदि आपको कोई परेशानी आ रही है तो Suchness की ई-मेल पर लिख सकते है हम आपको शीघ्र अति शीघ्र सन्देश देंगे!

धन्यवाद!!!