स्थूल शरीर, भौतिक शरीर, पार्थिव शरीर

स्वयं को जानने वाले साधको को हमारा सप्रेम प्रणाम-
हम आशा करते है की आप पूरी ईमानदारी से इस यात्रा में हमारे साथ-साथ चलोगे, यदि कहीं पर थोड़ा विश्राम करना पड़ जाये तो भी आप इसका पालन करते रहेंगे! हम आपको जो विधिया दे रहे है उनको आप कही भी प्रयोग करके अपने साक्षी-भाव को प्राप्त कर सकते है और हाँ यदि आप निरन्तर प्रयास करते रहे तो आप पर परमात्मा की कृपा बरसनी शुरू हो जाएगी, ये हम आपसे वादा करते है जब कहीं पर आपको थोड़ा बहुत संदेह हो तब आप हमारे से ई-मेल के जरिये समाधान प्राप्त कर सकते है!

स्थूल शरीर प्रकृति द्वारा सृजित एक ऐसा बहुमूल्य रतन है जो बाकि सभी हीरे-जवाहरातों से कही ज्यादा गुणकारी और मूल्यवान है! इस शरीर की रचना मुख्यत: माँ-पिता के मेल से हुई है, इस का रूपरंग सब मानवीय है! परन्तु इसको संचारित करने वाली शक्ति माँ-बाप न होकर आप स्वयं है और अगर आप इस यात्रा पर चलते रहे तो आपको स्वयं ही समझ में आ जायेगा की आप स्वयं के संचालक कैसे है! स्थूल शरीर या मानव देह पृथ्वी तत्व से मिलकर बना है जो खाना-पीना हम करते है यह उसी की संरचना है! इस प्रकार जो भी हम खाते-पीते है वही इसको पूर्णतया प्रभावित करता है! जब हमे ज्ञात है कि खाना-पीना ही इसका संचालक है तो हमें यह भी ज्ञात होना चाहिए कि क्या खाना-पीना है, कब खाना-पीना है, कैसे खाना-पीना है आदि!

अब आप निम्न चित्र को देखिये जो आपको चार प्रकार के शरीर के बारे में स्वयं समझाता है:

जैसा कि चित्र-1 में दर्शाया गया है कि सबसे बाहर जो शरीर है वह स्थूल शरीर है; उससे अगला सूक्ष्म शरीर है, उससे अगले मानस / मानसिक शरीर है, और सबसे केन्द्र में चेतन शरीर है! बाकि तीन शरीर चेतन शरीर में ही समाहित है जो आगे किसी भाग में आपको वर्गित मिल जाएंगे, फिलहाल हम स्थूल शरीर के बारे में जानेंगे!

जब तक स्थूल शरीर को जाग्रत नहीं किया जाता, तब तक बाकि शरीर जाग्रत नहीं हो सकते है! स्थूल शरीर के जाग्रत होने पर सूक्ष्म शरीर को संकेत पहुचता है, सूक्ष्म के जाग्रत होने पर मानसिक शरीर को संकेत पहुचता है और मानसिक शरीर जाग्रत होने के बाद ही चेतन शरीर को संकेत पहुचता है! हो सकता है किसी पर परमात्मा या सतगुरु की कृपा हो जाए तो चारो में से अन्तिम शरीर का भी आभास हो जाए, परन्तु वो कोई विरला ही हो सकता है!

यह ज्ञात है कि खाना दो ही प्रकार का होता है एक शाकाहार दूसरा मांसाहार! पहले चार शरीरों कि यात्रा में आप कोई भी खाना प्रयोग कर सकते है परन्तु यदि आप यात्रा के शुरू में मांसाहार का प्रयोग करके आगे बढ़ते है तो आप शरीर पांच, छः और सात के बारे में न सोचे; आप चार शरीर तक ही अपने को जान पाएंगे! और यदि आप यात्रा के शुरू से ही शाकाहार का प्रयोग करते है हो आप सातों शरीरों को जान सकने की शक्ति रखते है!

पहले तीन शरीर का विकास शाकाहार / मांसाहार दोनों का बराबर होता है, परन्तु चौथे शरीर में खाने-पीने के हिसाब से दैवीय शक्ति और राक्षसी शक्ति शरीर में वास करने लगती है यदि आप दैवीय शक्ति चाहते है और पूर्णतया मुक्त होना चाहते है तो शाकाहारी बने और यदि आप राक्षसी शक्ति चाहते है और चौथे शरीर तक अपना विस्तार चाहते है तो आप मांसाहार का प्रयोग कर सकते है!

अब निर्णय आपके पास है की आप क्या बनना चाहते है दोनों के निर्णयांक आप स्वयं है, यहाँ एक प्रश्न यह भी उठता है कि हम पहले ये खाते थे, वो खाते थे, तो उसकी बात नहीं है ये यात्रा पर चलने के दौरान की बात है अतः आप पहले क्या खाते-पीते थे उसकी नहीं, यह अब की बात है शायद आप समझ गये होंगे हम क्या बता रहे है आदि!

हाँ यदि आप इस यात्रा पर आगे नहीं बढ़ना चाहते है तो फिर आप कुछ भी खाये-पीये आप पर कोई रोक नहीं है और हाँ आप इससे पढ़कर भूल जाये तथा आगे के पृष्ठों को न पढ़े क्योकि फिर आप बिना अनुभव के विद्वान होंगे जोकि पहले से ही संसार में बहुतायत यात्रा में है आप उनकी संख्या को और बढ़ा देंगे! हमारा आपसे अनुरोध है कि आप अपने को धोखा न दे अगर खाने-पीने की विधि अनुसार नहीं कर पाये तो अपनी यात्रा के बारे में भूल जाए यही आपके लिए और संसार के लिए बेहतर होगा!

अब ध्यान दे खाने-पीने में क्या-क्या सावधानियां बरतनी है:-

  1. जब भी कोई तरल पदार्थ पीये जैसे पानी, दूध, कॉफ़ी, चाय, जूस आदि तो इनका सेवन बैठकर तथा घूंट-घूंट पीकर ही करे यानि खड़े-खड़े न पीये!
  2. जब भी खाना पीना खाये तो उसके साथ सलाद का प्रयोग आवश्य करे; और खाने को जितना हो सके चबा-चबाकर खाये ताकि दांतों का काम आंतों को न करना पड़े और आपके खाने को पचाने के लिए लार संयुक्त रूप से खाने के साथ मिलकर पेट पहुंचे! जब भी खाना खाये भूख से थोड़ा सा कम खाये और खाना खाते समय टी.वी., समाचारपत्र, किताब आदि से दूर रहे अर्थात खाने के समय केवल खाना ही हो! खाना हो सके तो जमीन पर या फर्श पर बैठकर ही खायें!
  3. आप अपने रोजाना के खाने में कुछ अंकुरित अनाज का प्रयोग करे जैसे मुंग, चना, सोयाबीन, मैथी आदि!
  4. दिन में किसी भी समय दो काली मिर्च चूस ले ताकि आपकी हाजमा दुरुस्त रहे! तथा दिन में 15-20 मिनट धुप में जरूर रहे!
  5. सप्ताह में दो-तीन बार 2 नीम की हरी पतिया मुँह में रख ले तथा दो-तीन घंटे तक इनको मुँह में रखे और बीच-बीच में हल्की चबा ले इससे आपको ज्यादा कड़वापन नहीं लगेगा और कई बीमारिया इसी से सही हो जाएगी!
  6. यदि किसी दिन आपको भूख नहीं हो तो हल्का भोजन ले जैसे खिचड़ी, दलिया, चावल, आदि या फिर दूध या जूस ले!

आपसे अनुरोध है जो आप भूख को न देखकर समय देखकर खाना खाते है इस आदत को तुरन्त बदल ले अन्यथा आधुनिक बिमारियों के लिए तैयार रहे जैसे मधुमेह(शुगर) बी.पी., तनाव आदि!

हाँ हो सकता है इन सबका प्रयोग करने पर आपको कुछ दिन अटपटा लगे परन्तु यदि आप इसको समाहित कर लेते है तो आप स्वयं ही अनुभव करने लगेंगे कि आप क्या थे और अब क्या है!

हमारा आपसे सप्रेम अनुरोध है यदि आप उपरोक्त नियमो का प्रयोग नहीं कर पा रहे है तो आप आगे न बढे, हम आपके आभारी रहेंगे!

धन्यवाद!!!